अच्युतं केशवं रामनारायणं
कृष्णदामोदरं वासुदेवं हरिम् ।
श्रीधरं माधवं गोपिकावल्लभं
जानकीनायकं रामचंद्रं भजे ॥1॥

अच्युतं केशवं सत्यभामाधवं
माधवं श्रीधरं राधिकाराधितम् ।
इन्दिरामन्दिरं चेतसा सुन्दरं
देवकीनन्दनं नन्दजं सन्दधे ॥२॥

विष्णवे जिष्णवे शाङ्खिने चक्रिणे
रुक्मिणिरागिणे जानकीजानये ।
बल्लवीवल्लभायार्चितायात्मने
कंसविध्वंसिने वंशिने ते नमः ॥३॥

कृष्ण गोविन्द हे राम नारायण
श्रीपते वासुदेवाजित श्रीनिधे ।
अच्युतानन्त हे माधवाधोक्षज
द्वारकानायक द्रौपदीरक्षक ॥४॥

राक्षसक्षोभितः सीतया शोभितो
दण्डकारण्यभूपुण्यताकारणः ।
लक्ष्मणेनान्वितो वानरौः सेवितोऽगस्तसम्पूजितो
राघव पातु माम् ॥५॥

धेनुकारिष्टकानिष्टकृद्द्वेषिहा
केशिहा कंसहृद्वंशिकावादकः ।
पूतनाकोपकःसूरजाखेलनो
बालगोपालकः पातु मां सर्वदा ॥६॥

विद्युदुद्योतवत्प्रस्फुरद्वाससं
प्रावृडम्भोदवत्प्रोल्लसद्विग्रहम् ।
वन्यया मालया शोभितोरःस्थलं
लोहिताङ्घ्रिद्वयं वारिजाक्षं भजे ॥७॥

कुञ्चितैः कुन्तलैर्भ्राजमानाननं
रत्नमौलिं लसत्कुण्डलं गण्डयोः ।
हारकेयूरकं कङ्कणप्रोज्ज्वलं
किङ्किणीमञ्जुलं श्यामलं तं भजे ॥८॥

अच्युतस्याष्टकं यः पठेदिष्टदं
प्रेमतः प्रत्यहं पूरुषः सस्पृहम् ।
वृत्ततः सुन्दरं कर्तृविश्वम्भरस्तस्य
वश्यो हरिर्जायते सत्वरम् ॥९॥

अच्युतं केशवं रामनारायणं – स्तोत्र का अर्थ और व्याख्या

यह स्तोत्र भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों और रूपों की स्तुति करता है। इसमें भगवान के कई नामों और उनके गुणों का वर्णन है, जो कि भक्तों के लिए प्रेरणादायक और भक्तिभाव से ओतप्रोत हैं। इस स्तोत्र का पाठ करने से भगवान की कृपा शीघ्र प्राप्त होती है।

श्लोक 1:

अच्युतं केशवं रामनारायणं कृष्णदामोदरं वासुदेवं हरिम्। श्रीधरं माधवं गोपिकावल्लभं जानकीनायकं रामचंद्रं भजे॥

अर्थ:

मैं भगवान अच्युत, केशव, राम, नारायण, कृष्ण, दामोदर, वासुदेव, हरि, श्रीधर, माधव, गोपिकाओं के प्यारे और जानकी के स्वामी रामचंद्र की भक्ति करता हूँ। इस श्लोक में भगवान विष्णु और उनके विभिन्न रूपों की स्तुति की गई है।

श्लोक 2:

अच्युतं केशवं सत्यभामाधवं माधवं श्रीधरं राधिकाराधितम्। इन्दिरामन्दिरं चेतसा सुन्दरं देवकीनन्दनं नन्दजं सन्दधे॥

अर्थ:

मैं अच्युत (अविनाशी), केशव, सत्यभामा के प्रिय माधव, राधा द्वारा आराधित श्रीधर की पूजा करता हूँ। वे इन्दिरा (लक्ष्मी) के निवास स्थान और देवकी के पुत्र हैं। इस श्लोक में भगवान कृष्ण के विभिन्न नामों और उनके लीलाओं का वर्णन है।

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श्लोक 3:

विष्णवे जिष्णवे शाङ्खिने चक्रिणे रुक्मिणिरागिणे जानकीजानये। बल्लवीवल्लभायार्चितायात्मने कंसविध्वंसिने वंशिने ते नमः॥

अर्थ:

भगवान विष्णु को, जो विजयी हैं, शंख और चक्र धारण करने वाले हैं, रुक्मिणी के प्रिय हैं, जानकी के पति राम हैं, गोपिकाओं के प्रियतम हैं, कंस का विनाश करने वाले और बांसुरी बजाने वाले हैं, उनको प्रणाम करता हूँ।

श्लोक 4:

कृष्ण गोविन्द हे राम नारायण श्रीपते वासुदेवाजित श्रीनिधे। अच्युतानन्त हे माधवाधोक्षज द्वारकानायक द्रौपदीरक्षक॥

अर्थ:

हे कृष्ण, गोविंद, राम, नारायण, श्रीपति, वासुदेव, विजेता, श्री के स्वामी, अच्युत, अनंत, माधव, अधोक्षज, द्वारका के नायक, द्रौपदी के रक्षक, मैं आपकी शरण में हूँ। इसमें भगवान के कई रूपों की स्तुति है, जिसमें वे हर परिस्थिति में रक्षा करते हैं।

श्लोक 5:

राक्षसक्षोभितः सीतया शोभितो दण्डकारण्यभूपुण्यताकारणः। लक्ष्मणेनान्वितो वानरौः सेवितोऽगस्तसम्पूजितो राघव पातु माम्॥

अर्थ:

जो राक्षसों को पराजित करने वाले, सीता के साथ शोभायमान, दण्डकारण्य में पूजित, लक्ष्मण के साथ रहते हैं, वानरों द्वारा सेवा किए जाते हैं और अगस्त्य ऋषि द्वारा पूजित हैं, वे राघव मेरी रक्षा करें।

श्लोक 6:

धेनुकारिष्टकानिष्टकृद्द्वेषिहा केशिहा कंसहृद्वंशिकावादकः। पूतनाकोपकःसूरजाखेलनो बालगोपालकः पातु मां सर्वदा॥

अर्थ:

धेनुकासुर और अरीष्टासुर को मारने वाले, केशी और कंस का नाश करने वाले, बांसुरी बजाने वाले, पूतना का विनाश करने वाले, सूर्य के साथ खेलने वाले बाल गोपाल मेरी सदा रक्षा करें।

श्लोक 7:

विद्युदुद्योतवत्प्रस्फुरद्वाससं प्रावृडम्भोदवत्प्रोल्लसद्विग्रहम्। वन्यया मालया शोभितोरःस्थलं लोहिताङ्घ्रिद्वयं वारिजाक्षं भजे॥

अर्थ:

जो विद्युत की तरह चमकते वस्त्र धारण करते हैं, वर्षा के बादल के समान शरीर वाले हैं, वनमाला से शोभित हैं, लाल पैरों वाले हैं, और कमल के समान नेत्रों वाले हैं, मैं उनकी भक्ति करता हूँ।

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श्लोक 8:

कुञ्चितैः कुन्तलैर्भ्राजमानाननं रत्नमौलिं लसत्कुण्डलं गण्डयोः। हारकेयूरकं कङ्कणप्रोज्ज्वलं किङ्किणीमञ्जुलं श्यामलं तं भजे॥

अर्थ:

मैं भगवान की पूजा करता हूँ जिनके घुँघराले केश हैं, जिनका चेहरा चमक रहा है, जिनके सिर पर रत्न मुकुट है, कानों में कुण्डल हैं, और हार, कंगन से सुशोभित हैं। उनका गहरा श्यामल रूप मनमोहक है।

श्लोक 9:

अच्युतस्याष्टकं यः पठेदिष्टदं प्रेमतः प्रत्यहं पूरुषः सस्पृहम्। वृत्ततः सुन्दरं कर्तृविश्वम्भरस्तस्य वश्यो हरिर्जायते सत्वरम्॥

अर्थ:

जो व्यक्ति प्रेमपूर्वक हर दिन इस अच्युताष्टक का पाठ करता है, उसे भगवान की कृपा प्राप्त होती है। उसके जीवन में शुभता और समृद्धि आती है, और भगवान हरि शीघ्र ही उसकी सभी इच्छाओं को पूरा करते हैं।

निष्कर्ष:

अच्युताष्टक का पाठ भगवान विष्णु और उनके विभिन्न रूपों की महिमा का गान है। इसमें भगवान के नामों का जप और उनके अवतारों की लीलाओं का स्मरण किया गया है। इसे पाठ करने से व्यक्ति को भगवान की असीम कृपा प्राप्त होती है, और जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है।

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